By: D.K. Chaudhary
कुछ बजट संकट के बजट होते हैं, कुछ बजट उम्मीदों के बजट होते हैं, लेकिन हर चार-पांच साल बाद हमारा सामना एक ऐसे बजट से होता है, जिसे चुनावी बजट कहा जाता है। उम्मीद यही थी कि इस बार जब वित्त मंत्री अरुण जेटली संसद में बजट पेश करने के लिए खड़े होंगे, तो उनके झोले से जो बजट निकलेगा, वह 2019 के आम चुनाव को ध्यान में रखकर ही तैयार हुआ होगा। लेकिन जो बजट सामने आया है, उसमें कई लोक-लुभावन तत्व भले ही हों, लेकिन उसे पूरी तरह चुनावी बजट भी नहीं कहा जा सकता। हालांकि यह सब अक्सर इस पर निर्भर करता है कि आप बजट को किस नजरिये से देखते हैं? मध्यवर्ग के हिसाब से देखें, तो उसके लिए बजट में कुछ खास नहीं है। खासकर नौकरी-पेशा वर्ग के लिए, जो आयकर में राहत की बड़ी-बड़ी उम्मीदें पाले बैठा था। ्रआयकर पर एक फीसदी के अतिरिक्त अधिभार ने उसके मुंह का जायका ही खराब किया है। कई और प्रावधानों को लेकर भी वह उलझन में है। बड़े उद्योग भी इसे अच्छा नहीं कहेंगे, क्योंकि उन्हें कॉरपोरेट टैक्स में जिस राहत की उम्मीद थी, वह नहीं मिली। इसका असर शेयर बाजार की शुरुआती प्रतिक्रिया में भी दिखा।
लेकिन अगर हम इस बजट को किसान और गरीब की नजर से देखें, तो यह बजट काफी उम्मीदें बंधाता है। सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य को लागत का डेढ़ गुना करके किसानों का दिल जीत लेना चाहती है। साथ ही समर्थन मूल्य अब सभी तरह की फसलों पर मिलेगा। सरकार इसकी भी व्यवस्था करना चाहती है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानों तक पहुंचे। इसके लिए एक तंत्र विकसित करने की भी बात है। अटकल यह है कि शायद इसके लिए मध्य प्रदेश की ‘भावांतर योजना’ जैसी कोई व्यवस्था बने। लेकिन बजट का सबसे बड़ा फैसला 50 करोड़ लोगों तक स्वास्थ्य बीमा योजना को पहुंचाना है। इसके तहत देश के दस करोड़ परिवार जरूरत पड़ने पर सालाना पांच लाख रुपये तक का इलाज करा सकेंगे। देश की आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा इस योजना में शामिल हो जाएगा। इससे यह उम्मीद भी बंधी है कि अगले कुछ ही साल में हम सबके लिए स्वास्थ्य सुविधा वाली मंजिल की ओर बढ़ सकेंगे। बेशक इस फैसले को लोक-लुभावन कहा जा सकता है। जाहिर है कि सरकार अगले चुनाव में इसे एक बड़ी उपलब्धि के रूप में पेश करेगी। इससे भी बड़ा सच यह है कि देश को स्वास्थ्य के लिए ऐसे ही बडे़ कदम की जरूरत थी। स्वास्थ्य क्षेत्र के प्रावधान बढ़ाकर स्वास्थ्य सुविधाएं सब तक पहुंचाने की बात कई बरस से चल रही है, लेकिन यह कोशिश किसी तरफ जाती नहीं दिखी। योजना से स्वास्थ्य इन्फ्रास्ट्रक्चर पर असर न पडे़, इसके लिए नए मेडिकल कॉलेज खोलने के प्रस्ताव भी काफी महत्वपूर्ण हैं।
यह भी ध्यान रखना होगा कि कुछ न कुछ अच्छी योजनाएं तकरीबन हर बजट में ही होती हैं। जनता पर, या यूं कहें कि मतदाताओं पर अंतिम प्रभाव इस बात का पड़ता है कि वे जमीन पर किस तरह से लागू होती हैं? वे किस तरह से जमीन पर पहुंचती हैं और किस तरह से अंतिम आदमी तक उसका फायदा पहुंचता है? और चुनाव पर ज्यादा असर बजट के प्रावधानों की बजाय योजनाओं के लागू होने का पड़ता है। इसलिए सरकार की असली परीक्षा बजट नहीं है, उसकी असली परीक्षा तो इसके बाद शुरू होगी।