By: D.K Chaudhary
सबसे पहले तो यह इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) से छेड़छाड़ का मामला नहीं है। उत्तर प्रदेश के कैराना लोकसभा उपचुनाव में सोमवार को मतदान के दौरान कई ईवीएम ने काम करना बंद कर दिया, तो हंगामा खड़ा हो गया। ईवीएम में छोटी-मोटी खराबी कोई बड़ी बात नहीं है और कोई नई बात भी नहीं है। लेकिन कैराना में इनकी संख्या काफी बड़ी थी। कैराना से राष्ट्रीय लोकदल पार्टी की उम्मीदवार तब्बसुम हसन ने खराब ईवीएम की जो सूची चुनाव आयोग को भेजी है, उसमें विभिन्न बूथ पर खराब मशीनों की संख्या 150 के आस-पास है। उत्तर प्रदेश के नूरपुर विधानसभा उपचुनाव के दौरान भी कुछ मशीनें खराब होने की खबर आ रही है। ऐसा सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही नहीं है, महाराष्ट्र से भी उपचुनाव के दौरान ईवीएम खराब होने की खबरें आई हैं, जिसके चलते वहां 35 मतदान बूथ पर चुनाव स्थगित भी कर दिया गया है। अच्छी बात यह है कि पक्ष या विपक्ष के किसी भी बडे़ नेता ने इसे लेकर कोई अतिरेक आरोप नहीं लगाया है। कैराना की प्रत्याक्षी ने चुनाव आयोग को जो शिकायत भेजी है, उसमें भी यही कहा गया है कि जल्द ही तकनीशियन भेजकर इन्हें ठीक कराया जाए।
कुछ भी हो, इतनी बड़ी संख्या में मशीनों का खराब होना चिंताजनक तो है ही। हालांकि खराब मशीनों के बारे में चुनाव आयोग ने अपनी सफाई दे दी है। आयोग का कहना है कि भीषण गरमी के कारण कुछ मशीनें ठीक से काम नहीं कर रहीं। इसके साथ ही आयोग ने यह वादा भी किया है कि जहां जरूरत पडे़गी, वहां वह फिर से चुनाव करवाने को तैयार है। महाराष्ट्र में कुछ बूथों पर फिर से मतदान की घोषणा तो दोपहर तक कर भी दी गई थी। लेकिन अगर ज्यादा गरमी के कारण ईवीएम के कामकाज पर असर पड़ता है, तो बहुत सी चीजों पर हमें फिर से सोचना होगा। एक सीधा तरीका तो यह हो सकता है कि भीषण गरमी के मौसम में चुनाव करवाए ही न जाएं। मामला सिर्फ ईवीएम का नहीं है, गरमी का असर चुनाव प्रचार से लेकर मतदान तक सब पर पड़ता है। जिन जगहों पर स्थानीय प्रशासन अधिक गरमी के कारण बाहर न निकलने के सुझाव दे रहा होता है, उन्हीं जगहों पर भरी दोपहर में लोगों को मतदान के लिए निकलना पड़ता है। वैसे आमतौर पर ऐसे मौसम में आम चुनाव नहीं करवाए जाते, पर उपचुनाव में यह सावधानी नहीं बरती जाती। दूसरा तरीका यह हो सकता है कि यदि ऐसे मौसम में चुनाव कराना जरूरी है, तो ईवीएम के लिए एयरकंडीशनिंग की व्यवस्था की जाए। कुछ भी हो, यह ऐसा मसला नहीं है, जिसे तूल दिया जाए। कुछ छिटपुट बयानों को छोड़ दें, तो ऐसा हो भी रहा है।
ईवीएम को लेकर विवाद आमतौर पर मतदान के दौरान नहीं, बल्कि चुनाव नतीजे आने पर उठते हैं। कई बार हारने वाले दल के नेता जनता में अपनी छवि बनाए रखने के लिए तुरंत प्रतिक्रिया में वोटिंग मशीनों से छेड़छाड़ या वोटिंग मशीनों के जरिए घपले जैसे आरोप लगाते हैं। ऐसे आरोप कुछ समय तक चर्चा में रहते हैं और फिर कोई कुछ नहीं कहता। आरोप लगाने वालों की मंशा भी ऐसे आरोपों को दूर तक ले जाने की नहीं होती। यह सिर्फ इसलिए हो पाता है कि चुनाव आयोग हमारे लोकतंत्र की एक ऐसी संस्था है, जिसकी निष्पक्षता पर मोटे तौर पर कोई सवाल नहीं उठाता। कैराना में मतदान के दौरान कोई बड़ा हंगामा न होने को इसी से समझा जा सकता है।