इंसाफ की डगर (Editorial page) 09th April 2018

By: D.K Chaudhary

भारतीय न्याय व्यवस्था में यह पहला मौका था जब सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने प्रेस वार्ता करके अपना विरोध जताया था। तबसे प्रधान न्यायाधीश को लेकर विपक्ष विरोध का तेवर अपनाए हुए है।

न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर के बयान से एक बार फिर अदालतों के कामकाज को लेकर बहस शुरू हो गई है। उन्होंने कहा है कि पूरी न्याय प्रणाली को दुरुस्त करने की जरूरत है। चेलमेश्वर प्रधान न्यायाधीश के बाद सुप्रीम कोर्ट के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश हैं। इस साल जनवरी में उनके साथ तीन अन्य जजों ने प्रेस वार्ता बुला कर कहा था कि न्याय प्रणाली में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा। अगर इस प्रणाली को दुरुस्त नहीं किया जाता, तो लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा होगा। भारतीय न्याय व्यवस्था में यह पहला मौका था जब सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने प्रेस वार्ता करके अपना विरोध जताया था। तबसे प्रधान न्यायाधीश को लेकर विपक्ष विरोध का तेवर अपनाए हुए है। यहां तक कि उनके खिलाफ महाभियोग चलाने की मांग की गई है। इस पर न्यायमूर्ति चेलमेश्वर का कहना है कि महाभियोग इसका समाधान नहीं है, पूरी न्याय प्रणाली में सुधार लाने की जरूरत है। हालांकि यह बात बहुत पहले से की जा रही है कि न्याय प्रणाली को दुरुस्त करने के लिए संविधान में कुछ संशोधन किए जाने चाहिए। इस दिशा में कुछ पहल भी हुई, पर उसका कोई नतीजा नहीं निकल पाया। चेलमेश्वर के इस बयान का कितना असर होगा, कहना मुश्किल है।
पिछले कुछ सालों में न्यायिक सक्रियता बढ़ी है। कई मौकों पर फैसले सुनाते वक्त न्यायाधीश सरकार पर ऐसी टिप्पणियां भी कर चुके हैं, जिससे वे समाचारों की सुर्खियां बने। यहां तक कि कुछ कानूनों में बदलाव के निर्देश देने के अलावा खुद भी उनमें संशोधन कर चुके हैं। इसलिए न्यायिक सक्रियता को लेकर भी बहसें होती रही हैं। इसके अलावा सबसे गंभीर आरोप है कि ऊपरी अदालतें राजनीतिक प्रभाव में आकर फैसले करती हैं। हाई कोर्ट तक के कुछ जजों पर भ्रष्टाचार के आरोप लग चुके हैं। ऐसे में जजों की नियुक्ति को अधिक भरोसेमंद और निष्पक्ष बनाने पर जोर दिया जाता रहा है। इसी मकसद से राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग का गठन किया गया, कॉलिजियम प्रणाली को खत्म कर जजों की नियुक्ति में सरकार की सहभागिता सुनिश्चित करने का प्रस्ताव रखा गया, मगर सर्वोच्च न्यायालय ने उसे अमान्य कर दिया। इसी तरह देश की सर्वोच्च अदालत में भी जजों की जिम्मेदारियां आबंटित करने, पीठों के गठन आदि को लेकर पक्षपात के आरोप लगते रहे हैं। इन सारी बातों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों में असंतोष बना रहता है, जो जनवरी में चेलमेश्वर और दूसरे जजों की भावनाओं के रूप में प्रकट हुआ था।

चेलमेश्वर राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के गठन और कॉलिजियम प्रणाली समाप्त कर जजों की नियुक्ति में सरकार की भूमिका तय करने के पक्ष में थे, पर बहुमत उनके खिलाफ था, इसलिए ये दोनों चीजें अमान्य कर दी गर्इं। निचली अदालतों में जजों की नियुक्ति चयन आयोग करता है, पर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में यह काम सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों का कॉलिजियम करता है। वह काबिल वकीलों में से किसी को जज की जिम्मेदारी सौंप देता है। इस तरह कई वर्गों और समुदायों के लोगों के प्रति भेदभाव के आरोप भी उस पर लगते रहते हैं। इसलिए चेलमेश्वर की पीड़ा को गंभीरता से समझने की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट पर लोगों का भरोसा है, उनमें विश्वास है कि अगर विधायिका और कार्यपालिका उनके अधिकारों की रक्षा करने में विफल होती हैं, तो न्यायपालिका उन्हें जरूर बचा लेगी। लिहाजा, लोकतंत्र को मजबूत बनाए रखने के लिए जरूरी है कि न्यायपालिका को सशक्त और भरोसेमंद बनाया जाए।

About D.K Chaudhary

Polityadda the Vision does not only “train” candidates for the Civil Services, it makes them effective members of a Knowledge Community. Polityadda the Vision enrolls candidates possessing the necessary potential to compete at the Civil Services Examination. It organizes them in the form of a fraternity striving to achieve success in the Civil Services Exam. Content Publish By D.K. Chaudhary

Check Also

चुनाव में शरीफ Editorial page 23rd July 2018

By: D.K Chaudhary लाहौर के अल्लामा इकबाल इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर जब पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज …