By: D.K Chaudhary
भारतीय न्याय व्यवस्था में यह पहला मौका था जब सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने प्रेस वार्ता करके अपना विरोध जताया था। तबसे प्रधान न्यायाधीश को लेकर विपक्ष विरोध का तेवर अपनाए हुए है।
चेलमेश्वर राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के गठन और कॉलिजियम प्रणाली समाप्त कर जजों की नियुक्ति में सरकार की भूमिका तय करने के पक्ष में थे, पर बहुमत उनके खिलाफ था, इसलिए ये दोनों चीजें अमान्य कर दी गर्इं। निचली अदालतों में जजों की नियुक्ति चयन आयोग करता है, पर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में यह काम सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों का कॉलिजियम करता है। वह काबिल वकीलों में से किसी को जज की जिम्मेदारी सौंप देता है। इस तरह कई वर्गों और समुदायों के लोगों के प्रति भेदभाव के आरोप भी उस पर लगते रहते हैं। इसलिए चेलमेश्वर की पीड़ा को गंभीरता से समझने की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट पर लोगों का भरोसा है, उनमें विश्वास है कि अगर विधायिका और कार्यपालिका उनके अधिकारों की रक्षा करने में विफल होती हैं, तो न्यायपालिका उन्हें जरूर बचा लेगी। लिहाजा, लोकतंत्र को मजबूत बनाए रखने के लिए जरूरी है कि न्यायपालिका को सशक्त और भरोसेमंद बनाया जाए।