By: D.K Chaudhary
आम आदमी पार्टी और उसके शीर्ष नेता अरविंद केजरीवाल चूंकि ईमानदारी और स्वच्छता के नए प्रयोग के दावे और वादे के साथ राजनीति में उतरे थे, इसलिए लोगों को उनसे उम्मीद रही कि वे किसी झूठ या अफवाह के सहारे अपनी सियासत चमकाने में विश्वास नहीं करते होंगे। ऐसी ही धारणाओं से बनी उनकी छवि के बूते दिल्ली की राजनीति में उन्हें जनता का व्यापक समर्थन मिला और वे सत्ता में हैं। लेकिन समय बीतने के साथ आम आदमी पार्टी के कई नेताओं के साथ-साथ खुद उनके बारे में भी जिस तरह की खबरें आ रही हैं, वे उनके दावों के प्रति लोगों को निराश करती हैं। ताजा मामला पंजाब में शिरोमणि अकाली दल के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया से अरविंद केजरीवाल के माफी मांगने से जुड़ा है। गौरतलब है कि उन्होंने पंजाब विधानसभा चुनाव के दौरान मजीठिया को मादक पदार्थों के तस्करों का सरगना कहा था। हालांकि उस समय उनके पास इस आरोप के क्या आधार थे, यह साफ नहीं है। कई बार एक-दूसरे पर इस तरह समान आरोपों की होड़ में मामला दब जाता है। मगर केजरीवाल के गंभीर आरोप के बाद मजीठिया ने उनके खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर कर दिया था। जाहिर है, तब केजरीवाल के सामने दो ही विकल्प बच गए थे। या तो वे अपने आरोप का आधार या उसके पक्ष में सबूत पेश करें या फिर माफी मांगें।
उन्होंने दूसरा रास्ता चुना। गुरुवार को बाकायदा लिखित माफीनामे में केजरीवाल ने मजीठिया से कहा है कि वे सभी आरोप बेबुनियाद निकले और इसलिए वे माफी मांगते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि गलती का अहसास होने पर माफी मांग लेना शालीनता का परिचय देता है। लेकिन क्या यह सच नहीं है कि हड़बड़ी में लगाए जाने वाले किसी आरोप से दूसरे पक्ष को कई बार व्यापक नुकसान हो सकता है? फिर, यह भी संभव है कि अपनी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की बातों के साथ खड़े होकर स्थानीय नेता या कार्यकर्ता जनता से समर्थन मांगते हों। लेकिन कुछ समय बाद अपने नेता को अचानक अपनी बातों से पलटते देख कर उनके बीच क्षोभ पैदा हो जाए। यह बेवजह नहीं है कि अरविंद केजरीवाल के मजीठिया से माफी मांगने के बाद उनकी अपनी ही पार्टी में तीखे मतभेद उभर आए। जहां पंजाब में पार्टी का नेतृत्व संभालने वाले और विधानसभा में विपक्ष के नेता सुखपाल सिंह खैरा ने सवाल उठाया कि जब एसटीएफ ने हाइकोर्ट में मजीठिया के खिलाफ मादक पदार्थों के मामले में ठोस सबूत होने की बात कह दी, उसके बाद इस माफीनामे के बारे में समझना मुश्किल है। कई अन्य नेताओं ने अरविंद केजरीवाल को इसके लिए कठघरे में खड़ा किया है।
हालांकि राजनीति की दुनिया में ऐसे मामले भी देखे गए हैं कि महज तात्कालिक फायदे के लिए अपने प्रतिपक्षी नेता के बारे में किसी अफवाह को तथ्य की शक्ल देकर प्रचारित कर दिया जाता है, जिसकी वजह से उसके राजनीतिक जीवन पर गंभीर असर पड़ता है। बाद में अगर वे आरोप गलत निकलते भी हैं तो उससे पहले के नुकसान की भरपाई नहीं हो पाती। गौरतलब है कि आम आदमी पार्टी के कई नेताओं पर मानहानि सहित कई तरह के मामले दर्ज हैं और उसमें केजरीवाल सहित कई नेताओं को काफी वक्त बर्बाद करना पड़ रहा है। इसलिए पार्टी ने इन मामलों को निपटाने का फैसला किया है। सवाल है कि वैकल्पिक राजनीति की दुहाई देकर जनता के बीच लोकप्रिय होने वाले अरविंद केजरीवाल या उनके सहयोगी अगर अपने ही आरोपों को लेकर स्पष्ट और ठोस नहीं होते हैं, तब उन्हें ऐसी बातें करने की हड़बड़ी क्यों होती है!