By: D.K Chaudhary
जब हम विशेष अदालत की बात करते हैं, तो उम्मीद एक ऐसी अदालत की बनती है, जहां सारी प्रक्रियाएं तेज चलती हों और तरीख-दर-तारीख न्याय के लिए लंबा इंतजार न करना पड़ता हो। शुक्रवार को जब पटना की विशेष अदालत ने बोधगया बम विस्फोट कांड पर फैसला सुनाया, तो यह चर्चा एक बार फिर ताजा हो गई। यह सात जुलाई 2013 की वारदात है, जब आतंकवादी संगठन इंडियन मुजाहिद्दीन और सिमी के सदस्यों ने महात्मा बुद्ध की निर्वाण स्थली को निशाना बनाया और दस बम लगाए। इनमें से कुछ बम फटे और बाकी को बाद में सुरक्षा बलों ने निष्क्रिय कर दिया। इस लिहाज से देखें, तो इस आतंकी वारदात के बाद विशेष अदालत का फैसला आने में लगभग पांच साल का समय लग गया। अभी भी यह अंतिम फैसला नहीं है, इस मामले में अपराधी ठहराए गए लोगों के पास ऊपरी अदालतों में अपील करने विकल्प रहेगा, इसलिए समय अभी और लगना है। यह ठीक है कि भारतीय अदालतों में मुकदमे आमतौर पर दशकों तक लटके रहते हैं। लेकिन आतंकवाद से जुड़े मामलों में ऐसा नहीं होना चाहिए, इसी सोच के साथ ऐसे मामलों के लिए विशेष अदालतों का प्रावधान किया गया था। लेकिन अगर वहां भी इतना समय लग रहा है, तो हमें प्रक्रिया को और तेज करने के तरीके ढूंढ़ने होंगे। यहां कुछ दूसरे मामलों से तुलना करके यह कहा जा सकता है कि पांच साल कोई बहुत लंबा समय नहीं है, लेकिन हम अगर आतंक के खिलाफ मुस्तैद होने का संदेश देना चाहते हैं, तो इसे और कम करना होगा।
ऐसा कहने का अर्थ अदालत के काम को कम करके आंकना नहीं है। वारदात के तुरंत बाद जांच एजेंसियों ने भी किसी नतीजे पर पहुंचने में समय लगाया था। सीसीटीवी फुटेज की जांच से लेकर बम का सामान सप्लाई करने वालों की पहचान और सबकी धर-पकड़ का काम कोई बहुत आसान भी नहीं था। और इसके बाद जब चार्जशीट पेश हुई, तो पहले एक-एक करके ढेर सारे सुबूत पेश हुए। इसके बाद 90 गवाहों की खुली गवाही हुई। इसके अलावा, अदालत में 12 ऐसे गवाह भी पेश हुए, जिनकी पहचान सुरक्षा कारणों से गोपनीय बनाए रखी गई। इन्हीं सुबूतों और गवाहियों के आधार पर अदालत इस नतीजे पर पहुंची कि सभी पांचों अभियुक्तों पर आरोप सिद्ध होते हैं और उन्हें दोषी करार दिया गया। हालांकि उन्हें कितनी सजा दी जाएगी, इसका पता 31 मई को तब पड़ेगा, जब विशेष अदालत फिर बैठेगी।
बोध गया में हुए ये विस्फोट इसलिए ज्यादा परेशान करने वाले थे, क्योंकि बाद में इसके पीछे का जो कारण सामने आया, उसका भारत से कोई संबंध नहीं था। पकडे़ गए आतंकवादियों ने बताया कि ये विस्फोट म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों पर हुए अत्याचारों का विरोध करने के लिए किए गए थे। यानी नाराजगी जिस बात पर थी, उसका भारत या बोध गया से कोई लेना-देना नहीं था। बोध गया को सिर्फ इसलिए निशाना बनाया गया, क्योंकि म्यांमार एक बौद्ध देश है और बोध गया उनके धर्म के प्रणेता महात्मा बुद्ध की निर्वाण स्थली है। जिन पांच अभियुक्तों को दोषी करार दिया गया है, उन सबका भी रोहिंग्या समुदाय से कोई लेना-देना नहीं। यह बताता है कि आतंकवाद का पूरा हिसाब किस सिरफिरे ढंग से चलता है। काश, ऐसे सिरफिरे आतंकियों को सजा कुछ और पहले दी जा सकती, ताकि इस राह जाने वालों को जल्दी सबक मिलता।