By: D.K Chaudhary
केंद्र सरकार ने आम बजट से पहले पेश किया जानेवाला आर्थिक सर्वेक्षण सोमवार को लोकसभा में प्रस्तुत किया। इसे लेकर इस बार उत्सुकता थोड़ी ज्यादा थी क्योंकि इस साल मोदी सरकार को अपने मौजूदा कार्यकाल का आखिरी बजट पेश करना है। इकनॉमिक सर्वे से आगामी बजट का कुछ अंदाजा तो मिल ही जाता है। तो सर्वेक्षण में इस बात का इशारा मौजूद है कि इस बार के बजट में ग्रामीण क्षेत्र और रोजगार पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। ये दोनों मोदी सरकार के काफी कमजोर पहलू रहे हैं। पिछले कुछ समय से किसान लगातार आंदोलन कर रहे हैं। उनका कहना है कि खाद, बीज, डीजल, बिजली और कीटनाशकों के महंगे होते जाने से खेती की लागत बढ़ती जा रही है लेकिन किसी भी उपज का सही मूल्य नहीं मिल रहा। इसी तरह सरकार पर यह आरोप भी लगा है कि वह रोजगार नहीं पैदा कर पा रही है।
पिछले दिनों प्रधानमंत्री ने अपने एक साक्षात्कार में रोजगार को लेकर जो बात कही, उसकी अराजनीतिक दायरों में भी खूब आलोचना हुई है। आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक वित्त वर्ष 2017-18 में आर्थिक वृद्धि दर 6.75 प्रतिशत रहेगी, जबकि 2018-19 यह 7 से 7.5 फीसदी तक पहुंच सकती है। वित्त वर्ष 2018-19 में कच्चे तेल की कीमतों में 12 फीसदी बढ़ोतरी का अनुमान लगाया गया है, जिसका ग्रोथ रेट पर असर पड़ना लाजिमी है। सर्विस सेक्टर की ग्रोथ 8.3 फ़ीसदी और कृषि क्षेत्र की बढ़त 2.1 फीसदी रहने की उम्मीद है। चुनावी मुद्दा बने जीएसटी और नोटबंदी के फायदों को लेकर सर्वे में अलग से बातें कही गई हैं। बताया गया है कि जीएसटी आने के बाद अप्रत्यक्ष करदाताओं 50 प्रतिशत बढ़ गए हैं, जबकि नोटबंदी से वित्तीय बचत को प्रोत्साहन मिला है। महंगाई न बढ़ने को बीते वित्त वर्ष की उपलब्धि बताया गया है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक की महंगाई दर 3.3 थी, जो पिछले छह वित्तीय वर्षों में सबसे कम है। सर्वे में कच्चे तेल की कीमत बढ़ने और शेयर कीमतों में गिरावट को संभावित जोखिम बताते हुए इनके प्रति सतर्क रहने की जरूरत बताई गई है।
कृषि क्षेत्र की मदद, एयर इंडिया का निजीकरण और बैंकों में पूंजी डालना अगले साल के मुख्य कार्यभार हैं। मध्यम अवधि में नौकरी, शिक्षा और कृषि पर फोकस सर्वे का खास सुझाव है। देश की विकास दर को लेकर वैश्विक वित्तीय संस्थाओं की सकारात्मक टिप्पणी से नोटबंदी के मामले में सरकार को राहत मिली है। विदेशी निवेश बढ़ने और शेयर बाजार के चढ़े रहने को वह विकास के तौर पर प्रोजेक्ट कर रही है, लेकिन आम जनता को सीधे छूने वाले पहलुओं पर उसके खाते में अभी कुछ खास नहीं है। विदेशी निवेशकों और किसानों-बेरोजगारों की जरूरतों के बीच वह कैसे संतुलन बना पाती है, इसका एक इम्तहान बजट में भी दिखेगा।