By: D.K Chaudhary 16th Nov 2017
बेहतर होगा कि अब यह विवाद शांत हो जाए और न्यायपालिका अपने उपायों से अपनी प्रतिष्ठा पर लगे दाग धोए।
संदेह और विवाद में घिरी देश की सर्वोच्च न्यायपालिका ने अपने संकट का समाधान निकालते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश को ही यह अधिकार दे दिया है कि स्वयं संदेह में घिरे होने के बावजूद पीठ गठित करने का अधिकार उन्हें ही है। बेहतर होगा कि अब यह विवाद शांत हो जाए और न्यायपालिका अपने उपायों से अपनी प्रतिष्ठा पर लगे दाग धोए। इसके बावजूद न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने मुख्य न्यायाधीश की अनुमति के बिना भ्रष्टाचार के एक मामले पर सुनवाई के लिए पीठ गठित करके मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र की साख और अधिकार को जो चुनौती दी थी उसके जख्म गहरे हैं, जिनके भरने में समय लगेगा। इस बात को स्वयं सुप्रीम कोर्ट ने भी सोमवार को अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल की दलीलों के बाद स्वीकार किया था कि इस मामले का फैसला चाहे जो हो लेकिन, देश की सर्वोच्च न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को नुकसान तो हो चुका है। लखनऊ के एक मेडिकल कॉलेज में भ्रष्टाचार के मामले में उड़ीसा हाई कोर्ट के जज की गिरफ्तारी और उसकी शक की सुई भारत के मुख्य न्यायाधीश तक पहुंचने के सवाल पर एसआईटी गठित करने की मांग वाली वाली दो याचिकाओं से न्यायपालिका बेहद आहत दिखी। मौजूदा विवाद न सिर्फ बार और बेंच का विवाद है बल्कि इससे बेंच का अंदरूनी विवाद भी सतह पर आ गया है। सुप्रीम कोर्ट में भ्रष्टाचार का मामला इससे पहले उस समय गरमाया था, जब दिल्ली से उद्योगों और झुग्गी-झोपड़ियों को हटाने का ऐतिहासिक आदेश जारी किया गया था और ऐसी याचिका दायर हुई थी। मौजूदा याचिकाओं ने फिर यह सवाल उठाया है कि अपनी स्वायत्तता के लिए कॉलेजियम प्रणाली स्थापित करने वाली न्यायपालिका अपनी साख के लिए क्या कर रही है। मौजूदा विवाद में उन वकीलों और संगठनों पर अवमानना की कार्रवाई करने का सुझाव दिया जा रहा है, जिन्होंने इस तरह की याचिका दायर की थी। दावा किया जा रहा है कि एक्टिविस्ट वकीलों ने न्याय का बड़ा नुकसान किया है। ऐसे में सवाल उठता है कि सर्वोच्च न्यायिक इकाई संगठन के उन सदस्यों के बारे में क्या निर्णय करेगी जो अपने ही साथी के बारे में संदेह करते हुए अराजकता पैदा करने वाला आदेश देते हैं? न्यायिक विश्वसनीयता के कमजोर होने से अदालत की स्वायत्तता भी कमजोर होगी और लोकतंत्र की रक्षा करने वाली एक संस्था भी/