By: D.K Chaudhary
जिन सुखराम के कथित भ्रष्टाचार के खिलाफ भाजपा ने तेरह दिन तक संसद नहीं चलने दी थी, हिमाचल प्रदेश में सरकार बनाने के लिए उन्हीं से हाथ मिला लिया था।
चारा घोटाले के कारण लालू प्रसाद यादव का जेल जाना देश की राजनीतिमें एक महत्त्वूपर्ण घटना है, पर यह अप्रत्याशित नहीं है। बीते शनिवार को रांची स्थित सीबीआइ की विशेष अदालत ने चारा घोटाले के एक मामले में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राजद मुखिया लालू यादव के अलावा दो पूर्व सांसदों और तीन पूर्व आइएस अधिकारियों समेत सोलह आरोपियों को दोषी करार दिया। अलबत्ता अदालत ने सजा सुनाने के लिए तीन जनवरी की तारीख मुकर्रर की है। बिहार के एक अन्य पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र, पूर्व मंत्री विद्यासागर निषाद और बिहार की लोक लेखा समिति के तत्कालीन अध्यक्ष ध्रुव भगत सहित छह अन्य भी आरोपी थे, पर अदालत ने उन्हें निर्दोष करार देते हुए बरी कर दिया। हमारे देश में बहुत-से राजनीतिकों पर सत्ता में रहते हुए पद का दुरुपयोग करने और भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। पर कोई-कोई मामला ही अदालती फैसले तक पहुंच पाता है। चारा घोटाले के मामलों में जांच और न्यायिक कार्यवाही लंबे अरसे से चलती रही है, और ताजा फैसला उनमें से सिर्फ एक मामले में आया है।
क्या संयोग है कि चारा घोटाले के इस मामले में फैसला 2-जी के मामले में आए फैसले के महज दो दिन बाद आया। 2-जी स्पेक्ट्रम आबंटन के बहुचर्चित मामले में पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा और द्रमुक सांसद कनिमोड़ी समेत सभी आरोपी बरी कर दिए गए थे। शायद इसलिए भी लालू यादव को उम्मीद रही होगी कि वे भी साफ बच निकलेंगे। लेकिन हुआ उनकी उम्मीद से उलट। लालू की मुसीबत यहीं खत्म नहीं होती। चारा घोटाले के चार अन्य मामले जो लंबित हैं उनमें भी लालू प्रसाद आरोपी हैं। फिर, आय से अधिक संपत्ति और धनशोधन के मामलों में प्रवर्तन निदेशालय और आय कर विभाग की जो कार्रवाई लालू परिवार के खिलाफ चल रही है उसकी आंच भी आएगी ही। खासकर बिहार की राजनीति पर इस सब का गहरा असर पड़ेगा। परिवार की जागीर बन चुके राजद के भविष्य पर सवालिया निशान लग चुका है। कांग्रेस ने संकट में लालू के साथ खड़े होने और गठबंधन कायम रखने का इरादा जताया है। इसे मजबूरी का ही निर्णय कहा जा सकता है, कोई नैतिक निर्णय नहीं। भाजपा को एक बार फिर लालू और साथ ही कांग्रेस को घेरने का मौका मिला है।
पर भाजपा का अपना रिकार्ड कैसा है? जिन सुखराम के कथित भ्रष्टाचार के खिलाफ भाजपा ने तेरह दिन तक संसद नहीं चलने दी थी, हिमाचल प्रदेश में सरकार बनाने के लिए उन्हीं से हाथ मिला लिया था। कर्नाटक में भाजपा की सरकार ने भ्रष्टाचार के नए रिकार्ड बनाए। लालू ने पद के अपने दुरुपयोग परदा डालने के लिए पिछड़ा कार्ड खेलने की कोशिश की है। जबकि उनके कारनामों से सामाजिक न्याय की लड़ाई मजबूत नहीं, बल्कि और कमजोर हुई है। पलटवार के अंदाज में बिहार के ‘सृजन’ घोटाले की अदालत की निगरानी में जांच की मांग तेज हो गई है। एक दूसरे को घेरने के चक्कर में इस तरह के और भी मामलों की चर्चा जोर पकड़ेगी। और इस तरह, जो तस्वीर सामने आएगी वह राजनीति के प्रति निराशा पैदा करने वाली ही होगी। ऐसे मामलों से सबक लेकर पद का बेजा इस्तेमाल और अनियमितता रोकने के लिए संस्थागत चौकसी बढ़ाई जानी चाहिए। पर लोकपाल की नियुक्ति न होना, अनेक राज्यों में लोकायुक्त और सूचना आयुक्तों के पद खाली रहना, आदि यह बताता है कि भ्रष्टाचार निरोधक सर्तकता अब भी लचर है।