अपराध और दंड (Editorial page) 24th April 2018

 By: D.K Chaudhary

सरकार के इस कदम से निस्संदेह बहुत सारे लोगों में भरोसा बना है कि बलात्कार जैसे जघन्य अपराध करने वालों के मन में कुछ भय पैदा होगा और ऐसे अपराधों की दर में कमी आएगी। मगर कई विशेषज्ञ मौत की सजा को बलात्कार जैसी प्रवृत्ति पर काबू पाने के लिए पर्याप्त नहीं मानते। उनका मानना है कि चूंकि ऐसे ज्यादातर मामलों में दोषी आसपास के लोग होते हैं, इसलिए उनकी शिकायतों की दर कम हो सकती है। पहले ही ऐसे अपराधों में सजा की दर बहुत कम है। इसकी बड़ी वजह मामलों की निष्पक्ष जांच न हो पाना, गवाहों को डरा-धमका या बरगला कर बयान बदलने के लिए तैयार कर लिया जाना है। यह अकारण नहीं है कि जिन मामलों में रसूख वाले लोग आरोपी होते हैं, उनमें सजा की दर लगभग न के बराबर है। उन्नाव और कठुआ मामले में जिस तरह आरोपियों को बचाने के लिए पुलिस और सत्ता पक्ष के लोग खुलेआम सामने आ खड़े हुए, वह इस बात का प्रमाण है कि कानून में चाहे जितने कड़े प्रावधान हों, रसूख वाले लोग जांच को प्रभावित करने में कामयाब हो जाते हैं। इसलिए स्वाभाविक ही मौत की सजा जैसे कड़े प्रावधानों के बावजूद कुछ लोग संतुष्ट नहीं हैं। वैसे भी हमारे यहां मौत की सजा बहुत अपरिहार्य स्थितियों में सुनाई जाती है, क्योंकि ऐसी सजा से किसी आपराधिक प्रवृत्ति में बदलाव का दावा नहीं किया जा सकता।

निर्भया कांड के बाद बलात्कार मामलों में सजा के कड़े प्रावधान की मांग उठी थी। तब पॉक्सो कानून में जो प्रावधान किए गए, वे कम कड़े नहीं हैं। उसमें भी ताउम्र या मौत तक कारावास का प्रावधान है। पर उसका कोई असर नजर नहीं आया है। उसके बाद बलात्कार और पीड़िता की हत्या की दर लगातार बढ़ी है। इसकी बड़ी वजह अपराधियों के मन में कहीं न कहीं यह भरोसा है कि ऐसे मामलों की जांचों को प्रभावित और तथ्यों के साथ छेड़छाड़ करके आसानी से बचा जा सकता है। ऐसे में त्वरित अदालतों के गठन से जल्दी न्याय मिलने की उम्मीद तो जगी है, पर जांचों को निष्पक्ष बनाने के लिए कुछ और व्यावहारिक कदम उठाने की जरूरत अब भी बनी हुई है। ऐसे मामलों की शिकायत दर्ज करने और जांचों आदि में जब तक प्रशासन का रवैया जाति, समुदाय आदि के पूर्वाग्रहों और रसूखदार लोगों के प्रभाव से मुक्त नहीं होगा, बलात्कार जैसी प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के लिए मौत की सजा का प्रावधान पर्याप्त नहीं होगा

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