By: D.K Chaudhary
देश के किसानों ने एक बार फिर सड़कों पर उतरकर बड़ा संदेश दिया है, जिसका असर शायद आने वाले दिनों में बाजार की बढ़ी हुई गरमी के रूप में महसूस हो। दस दिन के ‘गांव बंद’ की शुरुआत कर हरियाणा, राजस्थान, जम्मू-कश्मीर, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक और केरल के ये किसान अपनी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य के साथ ही सब्जियों का भी न्यूनतम मूल्य तय करने और पूरे देश के किसानों के लिए कर्ज माफी मांग रहे हैं। आंदोलन के पहले ही दिन पश्चिमी यूपी सहित कई राज्यों में फल, सब्जी और दूध विरोध स्वरूप सड़कों पर फेंके जाने की खबर है। मंदसौर में पुलिस की गोली से छह किसानों के मारे जाने की पहली बरसी छह जून के करीब आने के कारण मध्य प्रदेश में खास एहतियात बरती जा रही है।
सवाल है कि किसान बार-बार खेत छोड़कर सड़कों पर क्यों आ रहे हैं? सीधा मतलब है कि उनकी समस्याओं के समाधान के प्रति उन्हें आश्वस्त नहीं किया जा सका है। किसान लगातार संकट में घिरता गया है और संसाधनों की महंगाई के दौर में खेती-किसानी पहले जैसी आसान नहीं रह गई है। किसानों की स्थिति सुधारने की लिए 2004 में केंद्र सरकार ने जाने-माने अर्थशास्त्री एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में नेशनल कमीशन ऑन फार्मर्स बनाया था। आयोग ने 2006 में किसानों के समग्र और तार्किक विकास के लिए कुछ सुझाव भी दिए। रिपोर्ट सत्ता के किस गलियारे में खो गई, कोई नहीं जानता। किसान बस यही रिपोर्ट लागू करने, कर्ज माफी और अपनी फसल का उचित समर्थन मूल्य मांगते रहे हैं। इस बार भी मुद्दा यही है। ज्यादा दिन नहीं बीते, जब फरवरी में देश भर के किसानों के 68 संगठनों ने दिल्ली कूच किया था। तब भले ही सीमाएं बांधकर इन्हें वहां पहुंचने से रोक दिया गया हो, लेकिन किसान संगठनों ने उसी वक्त इसे प्रतीकात्मक प्रयास बताकर जता दिया था कि उनकी असली योजना तो अपने-अपने राज्य में आंदोलन को ऐसी गति देने की है, जिसकी आवाज दूर तक सुनाई दे। आज जब किसान अपने हल-बैल-ट्रैक्टर छोड़ सड़कों पर हैं, तो समझा जाना चाहिए कि उस योजना को अमली जामा देने की शुरुआत हो चुकी है। किसान संगठन आसपास के शहरों में अपनी सब्जियों और दुग्ध उत्पादों की आपूर्ति दस दिन तक निलंबित रखेंगे और राजमार्गों पर शांतिपूर्ण धरना-प्रदर्शन करेंगे।
सच तो यही है कि किसान लंबे समय से तमाम संकटों से जूझता रहा है, लेकिन उसकी मुश्किलों के स्थाई समाधान के लिए कभी कुछ नहीं हुआ। उचित दाम का मामला और बिचौलियों का जाल तो देशव्यापी समस्या है। ऐसे में उसे स्वामीनाथन आयोग की व्यावहारिक सिफारिशें देने में कोताही समझ से परे है। यह रिपोर्ट उन्हें लागत का पचास प्रतिशत से ज्यादा दाम और उन्नत किस्म के बीज कम दामों में देने की बात करने के साथ उनके लिए विलेज नॉलेज सेंटर बनाने, महिला किसानों के अलग क्रेडिट कार्ड, प्राकृतिक आपदा से बचाने के लिए जोखिम फंड जैसी व्यावहारिक बातें ही तो करती है। इस वक्त किसान मुश्किलों के उस दोराहे पर है, जहां जरूरत उनकी बातें सुनने, उन्हें व्यावहारिक समाधान देने की है। उन्हें यह महसूस कराने की जरूरत है कि कोई है, जो उनकी मांगों को महज मांग नहीं, उनकी जरूरत समझता है।