By: D.K Chaudhary
दिल्ली के शालीमार बाग स्थित मैक्स अस्पताल का लाइसेंस रद किए जाने के विरोध में दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन (डीएमए) का राजधानी में स्वास्थ्य सेवाएं ठप करने संबंधी धमकी देना निराशाजनक है। जीवित नवजात शिशु को मृत बताने संबंधी मामले में मैक्स अस्पताल पर कार्रवाई किया जाना एक कठोर फैसला अवश्य है, लेकिन निजी अस्पतालों की बढ़ती मनमानी के बीच यह सख्ती यकीनन जरूरी थी। फिर भी यदि सरकार के फैसले का विरोध करना ही है तो विरोध के शालीन तरीकों को छोड़कर स्वास्थ्य सेवाएं ठप करने की धमकी देने को उचित नहीं ठहराया जा सकता।
डीएमए की चेतावनी पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आइएमए) का उसके साथ खड़े न दिखाई देना यह दर्शाता है कि डीएमए के इस एलान से वह भी सहमत नहीं है। डॉक्टरों और डीएमए जैसी जिम्मेदार संस्थाओं को यह समझना चाहिए कि विरोध करने के और भी तरीके हो सकते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए कि उनके विरोध दर्शाने के फेर में किसी मरीज को इलाज न मिल सके या किसी मरीज की जान ही चली जाए। निजी अस्पतालों में इलाज में आने वाले खर्च को बेहिसाब तरीके से वसूले जाने और इलाज में लापरवाही बरते जाने की घटनाएं आम हैं। ऐसे में इन घटनाओं पर रोक लगाने के लिए इन अस्पतालों के खिलाफ कार्रवाई कतई अनुचित नहीं है। आइएमए और डीएमए जैसी संस्थाओं को ऐसे दिशानिर्देश तैयार करने चाहिए, जिनसे मरीजों के साथ होने वाली लूट पर रोक लग सके और इलाज में लापरवाही होने पर उनकी शिकायतों की उचित तरीके से सुनवाई और उसपर कार्रवाई हो सके।