इसमें कोई दो राय नहीं कि इन पर रोक लगाने में ट्राई अब तक बिल्कुल नाकाम रहा है। 2010 में उसने डू-नॉट-डिस्टर्ब (डीएनडी) सुविधा के जरिए अनचाही कॉल रोकने की कोशिश की थी, जिसके तहत 23.54 करोड़ से ज्यादा ग्राहकों ने रजिस्ट्रेशन कराकर खुद को अनचाही कॉलों से मुक्त रखने की इच्छा व्यक्त की थी। फिर भी उन्हें ऐसी कॉलों से छुटकारा नहीं मिल सका। नियमों के अनुसार सिर्फ रजिस्ट्रर्ड टेलिमार्केटिंग कंपनियां ही ग्राहकों को मार्केटिंग के लिए कॉल कर सकती हैं।
अक्टूबर 2016 के आंकड़ों के अनुसार देश में 11,350 टेलि मार्केटिंग कंपनियां ट्राई के साथ रजिस्टर्ड हैं जबकि 2.86 लाख गैर-पंजीकृत टेलिमार्केटर्स को ट्राई द्वारा नोटिस भेजा गया। सोचा जा सकता है कि टेलिमार्केटिंग का गैर-कानूनी कारोबार कितने बड़े पैमाने पर चल रहा है। सचाई यह है कि टेलिकॉम कंपनियों के सहयोग के बिना यह धंधा चल ही नहीं सकता। फिर भी उनके खिलाफ ट्राई ने कोई सख्त कारवाई नहीं की है। टेलिमार्केटिंग का गैर-कानूनी कारोबार डेटा के अवैध लेन-देन पर निर्भर है। इससे ग्राहकों का डेटा बाजार में नीलाम हो रहा है।
अनेक शहरों में छोटी-छोटी कंपनियां सक्रिय हैं जिनके पास आम लोगों के मोबाइल नंबरों का डेटाबेस है। इन छोटी कंपनियों को ‘डू नॉट कॉल’ के दायरे में लाना आसान नहीं है। इसके अलावा लोग खरीदारी करने या गाड़ी की सर्विसिंग कराने जाते हैं तो वहां अपनी जरूरी सूचनाएं छोड़ते हैं। ये कंपनियां भी गाहे-बगाहे फोन और मेसेज करना शुरू कर देती हैं। इन्हें कैसे रोका जाए, यह भी एक सवाल है। सिर्फ नियम बनाने से कुछ नहीं होने वाला। एक सख्त निगरानी तंत्र की जरूरत है जो इस बात पर नजर रखे कि नियमों का पालन कड़ाई से हो रहा है या नहीं।